■ मुक्तक : 324 – गुमनाम को शुहरत Posted on August 31, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments गुमनाम को शोहरत का ख़ुदा आस्मान बख़्श ॥ फ़नकार हूँ नाचीज़ हूँ कुछ मुझको शान बख़्श ॥ मुफ़्लिस हूँ इस हुनर से चले ज़िंदगी न हाय , मुर्दे को न काँधा दे मेरे बल्कि जान बख़्श ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,240