■ मुक्तक : 328 – कभी कभार ही Posted on September 7, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments कभी-कभार ही पीड़ा-दुःख को , हर्ष अतिरेक कहा हो ॥ महामूढ़ता को चतुराई , बुद्धि-विवेक कहा हो ॥ उलटबाँसियाँ कहना यद्यपि , रुचिकर रंच न मुझको , तदपि विवशतावश ही कदाचित , इक को अनेक कहा हो ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,048