■ मुक्तक : 332 – अंतरतम की पीड़ Posted on September 9, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments अंतरतम की पीड़ घनी हो होकर हर्ष बनी ॥ जीवन की लघु सरल क्रिया गुरुतर संघर्ष बनी ॥ तीव्र कटुक अनुभव की भट्टी में तप कर निखरा , मेरी आत्महीनता ही मेरा उत्कर्ष बनी ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,360