■ मुक्तक : 333 – तोड़ डालूँ Posted on September 10, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments तोड़ डालूँ या स्वयं ही टूट लूँ ? सौंप दूँ सब कुछ या पूरा लूट लूँ ? स्वर्ण अवसर है कि प्रहरी सुप्त हैं , क्यों न कारागृह को फाँदूँ छूट लूँ ? -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,252