■ मुक्तक : 336 – लगता खुली किताब Posted on September 12, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments लगता खुली किताब है जो एक राज़ वो ॥ दिखने में सीधा-सादा बड़ा चालबाज़ वो ॥ कर-कर के बातें सिर्फ़ वफ़ा आश्नाई की , देता दग़ा है दिल पे गिराता है गाज़ वो ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 2,841