■ मुक्तक : 354 – तेरे क़द के आगे Posted on October 1, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments तेरे क़द के आगे ऊँचे-ऊँचे भी बौने ॥ इक तू ही लगता पूरा दूजे औने-पौने ॥ वो शख़्सियत है तू जिसका कोई भी नहीं सानी , तू बस शेरे-बब्र और सब बकरी-मृगछौने ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,594