कविता : मैं नहीं कह सकता
मैं नहीं कह सकता……………..
मुझे मान्य है ।
सर्वथा मान्य है ।
आप जो कहते रहते हो प्रायः –
मात्र बेटों के पिता होने के बावजूद
बेटियों के बारे में ।
कि बेटियाँ ‘ये’ होती हैं ,
बेटियाँ ‘वो’ होती हैं ।
( ‘ये’ और ‘वो’ से यहाँ तात्पर्य
उनकी अच्छाइयाँ मात्र से है )
निरे अपवाद छोड़कर यही सच भी है
किन्तु
जिसे आप डंका बजा-बजा कर कह सकते हो
मैं वह सब नहीं कह सकता !
हरगिज़ नहीं कह सकता !
जबकि आपकी कविताओं में चित्रित ,
कहानियों , उपन्यासों में वर्णित
महान बेटियों से कहीं बढ़कर ही
मैंने सदैव उन्हे पाया है ।
क्योंकि ,
यदि जो आप कहते हैं
वही मैं भी बोलने लगूँ तो
इसे पक्षपात ही समझा जाएगा ।
मात्र बेटियों का बाप जो हूँ ।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति