■ मुक्तक : 361 – अपनी बदशक़्ली छिपा Posted on November 2, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments अपनी बदशक़्ली छिपा रोज़ ख़ुद को पेश करो ।। क़ाबिले दीद बना आप ख़ुद को पेश करो ।। कौन देखे है भला रूहो दिल का हुस्न यहाँ ? जिस्म भरपूर सजाकर ही ख़ुद को पेश करो ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,136