■ मुक्तक : 371 – अज़ीम शख़्स था Posted on November 13, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments अज़ीम शख़्स था हक़ीर से ज़माने में ।। लुटेरे सब थे वो लगा था बस लुटाने में ।। हमेशा मैंने चाहा उसपे लादना खुशियाँ , मगर उसे मज़ा था आता ग़म उठाने में ।। ( अज़ीम = महान / हक़ीर = तुच्छ ) -डॉ. हीरालाल प्रजापति 4,121