मुक्तक : 398 – होने को ख़ुश या रोने को Posted on December 8, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments ( चित्र Google Search से साभार ) होने को ख़ुश या रोने को उदास लोग बाग ।। क्या क्या लगाते रहते हैं क़ियास लोग बाग ? अंजाम कुछ भी अपने हाथ में नहीं वलेक , तकते हैं सब लकीरें आम-ओ-ख़ास लोग बाग ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 331