मुक्तक : 403 – निराधार , अनुचित Posted on December 19, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments मुझ पर निराधार , अनुचित व अकारण रोष ।। क्यों करते रहते हो ? मढ़कर झूठे दोष ।। शत्रु नहीं तुम मेरे कैसे लूँ मैं मान , नित्य पिलाते विष कहते हो करते पोष ? -डॉ. हीरालाल प्रजापति 148