मुक्तक : 413 – कपड़े-लत्तों में भी Posted on December 22, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments कपड़े-लत्तों में भी हूँ नंग-धड़ंगों की तरह ॥ मेरा कंघा बग़ैर दाँत का , गंजों की तरह ॥ दिल-दिमाग़-आँख भी रखने के बावजूद अक्सर , दर-ब-दर खाता फिरूँ ठोकरें अंधों की तरह ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 100