मुक्तक : 415 – कुछ बह्र की , कुछ जंगलों की Posted on December 23, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments कुछ बह्र की , कुछ जंगलों की आग बने हैं ॥ कुछ शम्अ , कुछ मशाल , कुछ चराग़ बने हैं ॥ वो तो बनेगा सिर्फ़ किसी एक का मगर , उसके फ़िदाई लाखों लोग-बाग बने हैं ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 93