मुक्तक : 428 – ज्यों आँखें मलते उठते हो Posted on December 29, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments ज्यों आँखें मलते उठते हो यों ही भीतर से जागो तुम ।। मैं आईना हूँ अपने सच से मत बचकर के भागो तुम ।। क़सीदे से कहीं उम्दा लगे ऐसी रफ़ू मारो , फटे दामन को कथरी की तरह मत हाय तागो तुम ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 480