मुक्तक : 430 – सबपे पहले ही से Posted on December 30, 2013 /Under मुक्तक /With 0 Comments सबपे पहले ही से बोझे थे बेशुमार यहाँ ।। अश्क़ टपकाने लगते सब थे बेक़रार यहाँ ।। सोचते थे कि होता अपना भी इक दिल ख़ुशकुन लेकिन ऐसा न मिला हमको ग़मगुसार यहाँ ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 124