■ मुक्तक : 434 – दिल से निकाल दूँगा Posted on January 1, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments दिल से निकाल दूँगा दर्द-ओ-रंज अगर तमाम , कैसे करूँगा ग़म की शायरी का ख़ुश हो काम ? अश्क़ों से ही तो पुरअसर बनाऊँ मैं अश्आर , रखता हूँ जितनी आँख ख़ुश्क उतने तर क़लाम ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,335