मुक्तक : 438 – कोई कितना भी हो ग़लीज़ Posted on January 8, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments कोई कितना भी हो ग़लीज़ या कि पाक यहाँ ॥ सबको होना है लेक एक रोज़ ख़ाक यहाँ ॥ ज़िंदगी लाख हो लबरेज़ दर्द-ओ-ग़म से मगर , किसको लगती नहीं है मौत खौफ़नाक यहाँ ? -डॉ. हीरालाल प्रजापति 115