■ मुक्तक :440 – कहाँ अब रात होगी Posted on January 10, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments कहाँ अब रात होगी और कहाँ अपनी सहर होगी ? बग़ैर उनके भटकते ज़िंदगी शायद बसर होगी ! रहेंगे जह्न-ओ-दिल में जब वही हर वक़्त छाये तो , हमें कब अपने जीने और मरने की ख़बर होगी ? -डॉ. हीरालाल प्रजापति 4,314