■ मुक्तक : 442 – न मेरा अस्ल मक़्सद हैं Posted on January 12, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments न मेरा अस्ल मक़्सद हैंं , वो ना मेरी वो हैंं मंज़िल ।। न मैं हूँ डूबती कश्ती , न वे ही नाख़ुदा-साहिल ।। नहीं होता मुझे बर्दाश्त सच हरगिज़ गुरूर उनका , लिहाज़ा उनको करना है , मुझे हर हाल में हासिल ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 2,938