■ मुक्तक : 446 – चाहे वो गंगा का हो Posted on January 16, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments गंगा का न जमुना न , दर्या ए चनाब का ।। इस वक़्त वो प्यासा है , बह्र के ही आब का ।। बेशुब्हा तड़प मर भी , जाएगा मगर कभी , प्याला न वो मुँह से लगाएगा तलाब का ।। ( दर्या ए चनाब = चिनाब नदी / बह्र = समुद्र / आब = पानी ) -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,430