■ मुक्तक : 447 – भाग्य Posted on January 17, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments जिनको मिलना हो निखालिस , चमचमाते स्वर्ण थाले , उनको प्याले सौंपता लोहे के वह भी ज़ंग वाले ।। भाग्य ही तो है जो अंधों , के लिए दर्पण थमाता , जो चमेली तेल मलमल , कर छछूंदर सर पे डाले ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,335