मुक्तक : 450 – ना जाने क्यों ख़ामोशी भी Posted on January 19, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments ना जाने क्यों ख़ामोशी भी शोर-शराबा लगती है ? मरहम-पट्टी-ख़िदमतगारी ख़ून-ख़राबा लगती है ॥ ख़ुद का जंगल उनको शाही-बाग़ से बढ़कर लगता है , मेरी बगिया नागफणी का सह्रा-गाबा लगती है ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 121