■ मुक्तक : 454 – बेशक़ दिखने में मैं नाजुक Posted on January 23, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments बेशक़ दिखने में मैं नाजुक-चिकनी-गोरी-चिट्टी हूँ ॥ लेकिन ये हरगिज़ मत समझो गीली-चीनी-मिट्टी हूँ ॥ चाहो तो दिन-रात परख लो करके मुझ पर बारिश तुम , मैं न गलूँगी अंदर से मैं लोहे जैसी गिट्टी हूँ ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,522