■ मुक्तक : 455 – कैसी-कैसी मीठी-मीठी Posted on January 23, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments कैसी-कैसी , मीठी-मीठी , प्यारी-प्यारी करती थी ? दिनभर भी क्या ? अधरात तलक भी , ढेरों-सारी करती थी ॥ आज मुख़ातिब मेरी तरफ़ होना भी गवारा उसको नहीं , जो मुझसे जज़्बात की बातें , भारी-भारी करती थी ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 4,226