■ मुक्तक : 457 – और भी ज़्यादा निगाहों Posted on January 26, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments और भी ज़्यादा निगाहों में लगो छाने ॥ दिल मचल उठता है तब तो और भी आने ॥ जब भी ये लगता है लगने मुझको शिद्दत से , अजनबी हो तुम , पराये तुम , हो बेगाने ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 2,923