■ मुक्तक : 459 – आबे ज़मज़म ही समझ Posted on January 28, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments आबे ज़मज़म ही समझ जह्र पिये जाता हूँ ।। बस ख़ुदा तेरी ही दम पर मैं जिये जाता हूँ ।। ज़िंदगी मेरी है दुश्वार बड़ी मुद्दत से , नाम रट-रट के तेरा सह्ल किये जाता हूँ ।। ( सह्ल = सरल , सुगम , आसान ) -डॉ. हीरालाल प्रजापति 2,613