■ मुक्तक : 470 – जी करता है अपने सर से Posted on February 7, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments जी करता अब अपने सर से धम्म गिराऊँ मैं ! अपने हलकेपन का कब तक वज़्न उठाऊँ मैं ? ख़ूब रहा गुमनाम कभी बदनाम भी हो देखा , अब सोचूँ कुछ यादगार कर नाम कमाऊँ मैं ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 2,219