■ मुक्तक : 471 – ज़िंदगी को इस क़दर Posted on February 8, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments ज़िंदगी को इस क़दर सर्दी हुई है , फ़ौर लाज़िम मौत की गर्मी हुई है ॥ थक गई चल-चल,खड़े रह-रह के अब बस , बैठने दरकार झट कुर्सी हुई है ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,236