■ मुक्तक : 477 – देखने में ही नहीं Posted on February 12, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments देखने में बस नहीं टूटा हुआ सा मैं ।। काँच सच गिरकर कहीं फूटा हुआ सा मैं ।। वज़्ह तुझको ही पकड़ने की तमन्ना में , दीन , दुनिया , ख़ुद से भी छूटा हुआ सा मैं ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 2,526