■ मुक्तक : 478 – मुक्त मन से बन सँवर कर Posted on February 13, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments मुक्त मन से बन सँवर कर पूर्णतः वह धज्ज थी ।। मुझसे सब इच्छाओं को सट मानने झट सज्ज थी ।। केलि के उपरांत आभासित हुआ वह त्यागिनी , अप्रतिम सुंदर मनोहर भर थी पर निर्लज्ज थी ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,416