■ मुक्तक : 483 – मुसाफ़िर Posted on February 17, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments मुसाफ़िर ज्यों इक हमसफ़र चाहता है ।। कोई धूप में ज्यों शजर चाहता है ॥ कि जैसे हो तितली को गुल की तमन्ना , मुझे भी कोई इस क़दर चाहता है ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 2,324