■ मुक्तक 485 – इक बूँद भर से Posted on February 19, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments इक बूँद भर से कलकल आबे चनाब होकर ॥ भर दोपहर का ज़र्रे से आफ़्ताब होकर ॥ अपने लिए तो जैसा हूँ ठीक हूँ किसी को , दिखलाना चाहता हूँ मैं कामयाब होकर ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,306