■ मुक्तक : 486 – पहले के जितने भी थे Posted on February 19, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments पहले के जितने भी थे वो सारे ही अब बंद ।। इश्क़ – मुहब्बत फ़रमाने वाले छुईमुई ढब बंद ।। क्या चुंबन क्या आलिंगन अब कर सब व्रीड़ाहीन , शर्म , हया , संकोच , लाज , लज्जा , लिहाज़ सब बंद ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 2,416