■ मुक्तक : 488 – वो जेह्नोदिल में Posted on February 22, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments वो जेह्नोदिल में जो बस आन बसा , जा न सका ।। वो स्वाद हमने चखा जिसका मज़ा , जा न सका ।। कहीं भी हो न सका फिर वो मयस्सर हाँ पर उस – शराबे वस्ल का ताउम्र नशा , जा न सका ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,108