■ मुक्तक : 495 – ग़म-ए-दिल का दिल Posted on March 4, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments ग़म-ए-दिल का दिल ही दिल में दर्द सहने को ॥ हम बहुत मज़्बूर थे चुपचाप रहने को ॥ लोग सब सुनने हमें तैयार बैठे थे , पास में अपने न थे अल्फ़ाज़ कहने को ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 5,119