■ मुक्तक : 504 – पाँव की तह की ज़मीं Posted on March 13, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments पाँव की तह की ज़मीं और न सर की छत या छाँव ।। मुल्क़ लगते हैं नहीं लगते सूबे , शहर या गाँव ।। इसका चस्का है ख़तरनाक कोई खेले तो , तो छोटे-मोटे न सियासत में कोई चलते दाँव ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 2,328