■ मुक्तक : 512 – शक्लों से हू-ब-हू Posted on March 23, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments शक्लों से हू-ब-हू तो कोई ज़रा जुदा है ।। लेकिन ख़ुदा , ख़ुदा है , ख़ास-ओ-अलाहदा है ।। ये सोचता हूँ ज्यों है मेरा क्या यूँ ही सबके , होता ख़ुदा का भी क्या अपना कोई ख़ुदा है ? -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,528