■ मुक्तक : 516 – स्याह राहों में Posted on April 6, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments स्याह राहों में चमकते रहनुमा महताब सी ।। तपते रेगिस्ताँँ में प्यासों को थी शर्बत , आब सी ।। उसका दिल लोगों ने जब फ़ुटबॉल समझा , हो गयी , उसकी गुड़-शक्कर ज़बाँँ भी ज़ह्र सी , तेज़ाब सी ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 4,221