■ मुक्तक : 517 – कुछ दिल के भोले मुझको Posted on April 7, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments कुछ दिल के भोले पक्के बदमाश नज़र आयें ? सच्चे भी कुछ मुज़र्रद अय्याश नज़र आयें ? लगते कभी हैं कुछ-कुछ मुर्दे तो इधर सोये ; कुछ सोये लोग मुझको क्यों लाश नज़र आयें ? ( मुज़र्रद = ब्रह्मचारी ) -डॉ. हीरालाल प्रजापति 4,217