■ मुक्तक : 518 – दिखने में साफ़-सुथरे Posted on April 8, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments दिखने में साफ़-सुथरे बीने – छने हुए थे ।। लगते थे दूर से वो इक – इक चुने हुए थे ।। ख़ुश था कि दोस्त बनिये ने दाम कम लगाए , घर आके पाया सारे गेहूँ घुने हुए थे ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,520