■ मुक्तक : 533 – ठंडे बुझे पलीतों को Posted on June 3, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments ( चित्र Google Search से साभार ) ठंडे बुझे पलीतों को गाज बनते देखा ।। कल तक तो चंद बहुतों को आज बनते देखा ।। दुनिया में अब बचा क्या है कुछ भी ग़ैरमुमकिन ? जूता घिसा-फटा भी सरताज बनते देखा ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,226