■ मुक्तक 537 – ताउम्र कराहों की न Posted on June 7, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments ताउम्र कराहों की न आहों की सज़ा दो ॥ मत एक ख़ता पर सौ गुनाहों की सज़ा दो ॥ जूतों को छीन-फाड़ दो टाँगें तो न काटो , चाहो तो बबूलों भरी राहों की सज़ा दो ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 4,128