■ मुक्तक : 540 – क़ुदरत ने तो बख़्शा था Posted on June 14, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments क़ुदरत ने तो था बख़्शा हमको हुस्न लाजवाब ॥ जंगल घने थे , झीलें थीं भरी , नदी पुरआब ॥ पेड़ों को किसने काट-काट उजाड़ दी ज़मीन ? हमने नहीं तो किसने सूरत इसकी की ख़राब ? -डॉ. हीरालाल प्रजापति 1,618