■ मुक्तक : 546 – उसके अंदर Posted on June 18, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments उसके अंदर ये ही मंज़र दिखाई देता है ।। बिखरे कमरे से सिमटा घर दिखाई देता है ।। जबसे सीखी है बिना शर्त परस्तिश उसने , मुझको बेहतर से वो बेहतर दिखाई देता है ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 2,232