■ मुक्तक : 558 – बिना पर बाज़ Posted on June 27, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments बिना पर बाज़ से बेहतर परिंदा मानने वालों ॥ मरे होकर हमेशा तक को ज़िंदा मानने वालों ॥ नहीं क्यों शर्म करते आख़री होकर करोड़ों में , हमेशा ख़ुद को दुनिया में चुनिंदा मानने वालों ? -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,538