■ मुक्तक : 560 – लाखों मातम में भी Posted on June 29, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments लाखों , मातम में भी जिगर न जो बिलख रोएँ ॥ जिस्म तोला हजारों रत्ती सर टनों ढोएँ ॥ देख हैराँ न हो यहाँ बगल में फूलों के , सैकड़ों , नोक पे काँटों की मुस्कुरा सोएँ ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 2,245