■ मुक्तक : 563 – पूर्ण पृथ्वी Posted on July 1, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments पूर्ण पृथ्वी जिसका आँगन हो गगन छप्पर ॥ एक इतना ही बड़ा अद्भुत बनाएँ घर ॥ विश्वजन चिरकाल तक आनंद से जिसमें , प्रेम से , ईमानदारी से रहें मिलकर ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 2,037