■ मुक्तक : 567 – गुल तो गुल Posted on July 6, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments गुल तो गुल गुलशन का गुञ्चा-गुञ्चा भी घबराया है ॥ फिर तेरा चेहरा खिला क्यों ? टुक नहीं कुम्हलाया है ॥ तू तो ख़ुशबूदार सबसे फिर भी क्यों बेफ़िक्र तू ? क्या तू जाने ; याँ बनाने इत्र कोई आया है ? -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,334