■ मुक्तक : 571 – पाऊँ न आस्माँ Posted on July 9, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments पाऊँ न आस्माँ बुलंदियाँ तो छुऊँगा ॥ ताक़त को अपनी सब समेट अब मैं उड़ूँगा ॥ मुर्ग़ा हूँ अपने पंख देखकर ही रहा ख़ुश , उनके लिए मगर अब एक बाज़ बनूँगा ॥ -डॉ. हीरालाल प्रजापति 3,244