■ मुक्तक : 572 – पर्वत होकर चलना Posted on July 10, 2014 /Under मुक्तक /With 0 Comments ( चित्र Google Search से साभार ) पर्वत होकर चलना चाहूँ ।। पानी बनकर जलना चाहूँ ।। है तो यह नामुम्किन लेकिन , बिन पिघले ही ढलना चाहूँ ।। -डॉ. हीरालाल प्रजापति 1,622